Monday, November 24, 2014

भ्रष्टाचार के खिलाफ एक और मुहिम शुरू

भ्रष्टाचार के खिलाफ एक और मुहिम शुरू
भ्रष्टाचार विरोधी मोर्चा  के राष्ट्रीय अध्यक्ष संदीप शक्ति  ने कहा कि भ्रष्टाचार विरोधी मोर्चा कोई राजनीतिक पार्टी नहीं बल्कि एक विचारधारा है।मोर्चा का प्रयास है कि राजनीति में साफ छवि के लोग आयें और स्वच्छ शासन की बुनियाद रखी जा सके। समाजसेवी अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के आंदोलन की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उनके संघर्ष को युवाओं की बड़ी भागीदारी मिलना इस बात का प्रमाण है कि लोग राजनीतिक विकल्प की तलाश में थे । राजनीतिक विकल्प का स्वार्थ लेकर ही लोग रामदेव और अन्ना के आंदोलन के भागीदार बने, लेकिन यहां भी आम जनता का सपना पूरा नहीं हुआ। बाबा रामदेव और अन्ना हजारे राजनीतिक विकल्प दे पाने में विफल रहे और यही वजह है कि एक बार फिर जनता अपने को ठगा महसूस कर रही है। भ्रष्टाचार विरोधी मोर्चा युवाओं और बुध्दिजीवियों को संगठित कर नया विकल्प तैयार करना चाहता है। वर्तमान समय में देश के सामने भ्रष्टाचार एक बड़ी चुनौती है और इससे निपटने के लिए युवा पीढ़ी को संगठित होना पड़ेगा। भ्रष्टाचार विरोधी मोर्चा गठित कर युवाओं, बुध्दिजीवियों, समाजसेवियों और प्रबुध्द नागरिकों के लिए एक प्लेटफार्म तैयार कर दिया है। हम चाहेंगे कि अधिक से अधिक संख्या में लोग इस मंच से जुड़ें ताकि भ्रष्टाचार पर सामूहिक प्रहार किया जा सके।जातीय व्यवस्था को भ्रष्टाचार की जननी करार देते हुए श्री संदीप शक्ति  ने कहा कि आज हर काम जातीय आधार पर हो रहा है। जब तक जातीय व्यवस्था पर प्रहार नहीं किया जायेगा, तब तक भ्रष्टाचार से पार पाना मुश्किल है। भ्रष्टाचार विरोधी मोर्चा  ने अपनी मुहिम का नाम दिया है- ‘जाति तोड़ो, भारत जोड़ो,भ्रष्टाचार विरोधी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष संदीप शक्ति  ने कहा कि रोज- रोज भ्रष्टाचार के मामले सामने आ रहे है, और राजनैतिक सोंच रखनेवाले युवाओं को राजनीति में आना चाहिए . यह मोर्चा उनका जोड़ने का कiम करेगी जिससे भ्रष्टाचार के खिलाफ लडाई लड़ रहे साथियों को भी बल मिलेगा. युवाओं को मौके कि जरूरत है . भारत का युवा अब अपनी ताकत पहचानता है . अगर उसे सही दिशा दी जाए तो वह देश की दशा बदल सकता है. भ्रष्टाचार शासन और सुशासन का शत्रु है. हमें उसे शत्रु समझकर ख़त्म करना होगा .
 आंदोलन की 'आग'अभी बुझी नहीं है

एसी कमरों में बैठने वाले कुछ आलोचक जो गैरकानूनी तरीकों से अपना काम निकलवाने में कोई हिचक महसूस नहीं करते और फिर उतने ही निश्शंक अंदाज में यह प्रवचन भी देते हैं कि 'हम' कितने करप्ट हो गए हैं, अब भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को यह कहते हुए खारिज करने लगे हैं कि यह आंदोलन मर चुका है।  भ्रष्टाचार नियंत्रण में आ चुका है।

स्वतंत्र भारत की समस्याएं

1.राष्ट्रप्रेम के जज्बे का गिरता हुआ स्तर .
2.दम तोडती मातृभाषा,घुटती हुयी राष्ट्रभाषा ,पोषण पा रही अंग्रेजी भाषा .
3.चरित्र निर्माण विहीन शिक्षा पद्धति,जो सफल नागरिक देने में पूर्ण रूप से असफल हो रही है ।
4.देश में नागरिक भारतीय की जगह हिन्दू,मुस्लिम, इसाई आदि से जाने जाते हैं यानि फुट डालोऔर राज करो .
5.आर्थिक असमानता -97% पूंजी 3% जनता के हाथ में यानी गलत और असफल  आर्थिक नीतियाँ .
6.गुलामी की मानसिकता में जीने वाली जनता
.7.अपरिपक्व न्याय व्यवस्था .8.संविधान सुधार में ढिलाई
.9.दोषपूर्ण सार्वजनिक वितरण प्रणाली
10.पदलोलुप,भ्रष्ट और चरित्रहीन होता शासक वर्ग
11.नारे ज्यादा ,काम कम
12.बेलगाम चुनावी खर्च
13.राष्ट्र के धन का भरपूर दुरूपयोग और लूट .
14.बुनियादी जरुरत की जगह लोकलुभावन अपव्यय बढ़ाने वाली योजनाओं पर बेशुमार खर्च15.साख खोती पत्रकारिता
-- आज भ्रष्टाचार का दानव इतना बड़ा हो चुका है कि अगर लोकतांत्रिक तरीके से उसके खिलाफ आंदोलन न शुरू कर दिए गए तो बहुत बुरा होगा। इसमें दो राय नहीं है कि संसदीय लोकतंत्र में बहुत सारी खामियां हैं, लेकिन उससे बेहतर विकल्प अभी ईजाद नहीं हुआ है। इसलिए एक देश के रूप में हमें अपने संसदीय लोकतंत्र की रक्षा करनी ही होगीभ्रष्टाचार विरोधी र्मोचा  अध्यक्ष संदीप शक्ति  ने ये भी कहा कि जरूरत के अनुसार एक अच्छा वातावरण बने ,जिसमें अच्छे ,राष्ट्रभक्त , बुद्धिजीवी और भारत के सेवा के लिए  इमानदारी और संकल्प के साथ आगे आयें। उन्होने जोर देते हुए कहा  कि समय आ गया है जब  भ्रष्टाचार के खिलाफ लडाई में समाज को मुख्य भूमिका निभानी होगी।आज सबसे बड़ी आवश्यकता इस बात की है की भ्रष्टाचार के विरोध  में सकारात्मक पहल एवं जनजागृति लाई जाए, जो हम सबों का सामूहिक कर्त्तव्य है


गांधी जी का मंत्र था कि जब भी कोई काम हाथ में लो, यह ध्यान में रखो कि इससे सबसे गरीब और कमजोर व्यक्ति को क्या लाभ होगा। यदि हम स्वराज के व्यापक लक्ष्य को प्राप्त करना और समावेशी विकास चाहते हैं तो हमें गांधी जी के इस मंत्र को अपने जीवन का आदर्श बनाना होगा।विश्व आज पर्यावरणीय विभीषिकाओं, आतंकवादी हिंसा, कुपोषण से होने वाली मृत्यु से लेकर प्रचुरता से उत्पन्न समस्याओं का सामना कर रहा है। समूचा विश्व, चाहे वह समृद्ध ‘उत्तर` हो या विकासशील ‘दक्षिण`, एक अंधी दौड़ में लगा हुआ है। विश्व के मानचित्र पर एक दूसरे से अनजान, दो अलग-अलग प्रकार की दौड़ हो रही है। एक दौड़ उन लोगों की है जो संपन्न हैं, पर कुछ और पाने की लालसा लिये दौड़ में लगे हैं। दूसरी दौड़ उन लोगों की है, जो दो जून की रोटी के लिए, अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए जूझ रहे हैं। ऐसे ही लोगों के लिए, गांधी जी के विचारों- ‘अपरिग्रह` और ‘स्वराज` का महत्व बढ़ जाता है

No comments:

Post a Comment